Sunday, 17 February 2013

गुरुडम के पाखण्ड


 भारतवर्ष की प्रजा स्वभाव से धर्म की ओर विशेषरूप से आकृष्ट रहती है..इस देश के निवासियों की परमात्मा के प्रति स्वभाविक आस्था होती है..प्रत्येक मनुष्य यहाँ मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है..वह आवागमन के चक्र से छूटने के लिए निरंतर संघर्ष रत देखा जाता है..क्योंकि इस देश का निवासी यह जानता है कि उसे निजकर्मानुसार पशु,पक्षी,कीट,पतंगादि की योनियों में भ्रमण करना पड़ता है..यह मानव जन्म उसे बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है..अतः जीवन चक्र के कष्टों से यदि वह छूटकर परमात्मा के अपार आनंद का उपभोग करने लिए प्रयत्न कर सकता है तो इसी मानव योनि में ही कर सकता है , अतः इस पवित्र भूमि का प्रत्येक राम-कृष्ण का वंशज अपने को माननेवाला नागरिक परमेश्वर की भक्ति करने में रूचि रखता है , क्योंकि उसे बताया जाता है कि मोक्ष केवल परमात्मा की कृपा से संभव होता है...मोक्ष क्या है ? और वह किस प्रकार मिलता है इस विषय पर संसार के सभी मतवादियों ने विचार किया है और सभी ने विभिन्न प्रकार के मार्ग उसके लिए बताये है..वैदिक धर्म संसार का सर्वप्राचीन सृष्टि के आदि काल में परमात्मा प्रदत्त वेद ज्ञान के आधार पर सत्य धर्म है,उसमे मोक्ष के विषय में बताया गया है कि मुक्ति केवल योगियों को "वेदज्ञधीर" व्यक्तियों को ही प्राप्त होती है..इसके लिए निम्न वेद मन्त्र द्रष्टव्य है--
        वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्  !
        तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यते अयनाय  !!     ( यजुर्वेद  ३१ / १८ )
   अर्थात मोक्ष प्राप्ति का केवल एक ही मार्ग है कि परमेश्वर को जाना जाये कि अन्धकार से परे ज्ञानस्वरूप एवं प्रकाशरूप महान सर्वव्यापक सत्ता है..इसके अतिरिक्त अन्य मार्ग मोक्ष का नहीं है.
   परमेश्वर को जानने के लिए मनुष्य को पूर्ण सदाचारी,यम-नियमों का पालन करनेवाला पूर्ण योगी होना आवश्यक है..क्योंकि परमात्मा पंचभूतों का कार्य न होने से पञ्च ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा नहीं जाना जाता , बल्कि समाधिस्थ अवस्था में अनुभव किया जाता है..जो कि बिना योगाभ्यास के किसी भी प्रकार संभव नहीं है..पूर्ण योगी जब समाधिस्थ होता है,उसका बाह्य जगत से सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है तो आनंद रूप से परमेश्वर की प्राप्ति होती है , वह प्रभु के आनंद में तन्मय हो जाता है..इस प्रकार दीर्घकाल तपस्या करते-करते अंत में जब योगी भौतिक शरीर का त्याग करता है तो वह प्राणों को आकर्षित करके सुषुम्णा नाड़ी के मार्ग से सर के उस स्थान से (द्वार से) जिसे ब्रह्म-रंध्र कहते है और जहाँ इस नाड़ी का अंत होता है तथा जहाँ तक शिखा रखी जाती है , वहाँ से निकालकर भौतिक देह को त्याग कर परमात्मा से सायुज्य स्थापित कर लेता है..जैसे कि उपनिषत्कार ने लिखा है--
      " सूर्यद्वातेण ते विरजाः प्रयान्ति "
   अर्थात योगी सूर्य नाड़ी के मार्ग से प्राणों का उत्सर्ग करके मोक्ष को प्राप्त करते है..श्री कृष्णजी के उपदेशों के नाम से बाद को गढ़ी पुस्तक गीता में उसके लेखक ने भी इसी बात का प्रतिपादन स्पष्ट शब्दों में किया है--
       प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्विषः  !
       अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्  !!    ( गीता  ६ / ४५ )
   अर्थात अनेक जन्मों से सिद्धि को प्राप्त हुआ और अति प्रयत्न से योगाभ्यास करनेवाला योगी पुरुष सम्पूर्ण पापों से शुद्ध होकर उस साधन के प्रभाव से परमगति ( मोक्ष ) को पाप्त होता है
   इससे स्पष्ट है कि मोक्ष पाना सरल कार्य नहीं है..यह केवल ब्रह्मवेत्ता योगी लोगों के लिए ही संभव है..किन्तु इस तथ्य को न समझकर अनेक लोगों ने मोक्षाभिलाषी जनता को अनेक प्रकार के सरल मार्ग अपनी कल्पना से स्वार्थवश बताकर सत्य से विमुख बनाया है, और इसी आधार पर नाना प्रकार के सम्प्रदायों की सृष्टि संसार में हुई है
   ईसाई मत में ईसामसीह पर ईमान लाना और क़यामत के दिन ईसा की सिफारिश से मुक्ति मिलने का विधान है..मुसलमानों में इस्लाम,कुरान,खुदा और मुहम्मद पर ईमान लाना और क़यामत के दिन मुहम्मद साहब की सिफारिश से मुक्ति मिलने की व्यवस्था है ..बौद्ध मत में भगवान् बुद्ध ही मुक्तिदाता माने गये है..जैन मत में तीर्थंकारों की मूर्ती की उपासना,सम्यक दर्शन,सम्यक आचरण से मुक्ति मानी गयी है..कबीर मत में कबीरदास ही मुक्तिदाता है..शैव मत में शिवजी,वैष्णव मत में विष्णु ,शाक्त मत में देवी की उपासना व उनकी मूर्ती पूजा करने से मुक्ति मिलती है
   जिस-जिस सम्प्रदाय को जिस-जिस व्यक्ति ने चलाया , उस सम्प्रदाय में उसी व्यक्ति को परमात्मा मानकर उसकी पूजा का विधान जारी हो गया है और उसे ही उसके भक्तों ने मुक्तिदाता परमेश्वर मान लिया है..हमारे देश में आज भी कई नये-नये पंथ जारी हो रहे हैं,चतुर लोगों ने स्वयं को परमात्मा का अवतार बता कर जनता को बहका रखा है..यह गुरुडमवाद हमारे देश के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो रहा है..जनता को बताया जाता है कि गुरु ही साक्षात परमेश्वर होता है..बिना गुरु के कोई भी मुक्ति नहीं पा सकता है..गुरु ही ब्रह्मा रूप है..उसी कि सर्वात्मना भक्ति करनी चाहिए..उसको तथा उसके चित्रों को पूजना चाहिए
   भक्त लोग अपने गुरु की नाना प्रकार की चामत्कारिक कल्पित बातें लोगों को जा-जाकर सुनाते हैं..विशेषतः स्त्रीयों को प्रभावित करते हैं और सरलता से उनको चेला-चेली बनाकर अपने पंथ का विस्तार करते हैं
   जब एक व्यक्ति अवतार बनकर जनता को ठगकर अपने सम्प्रदाय द्वारा अपना उल्लू सीधा करने में सफल हो जाता है तो दूसरे ठग भी उसी की नक़ल करके अपने को अवतार बनाकर अपने-अपने सम्प्रदाय चालु करने को उत्साहित होते हैं..ये लोग स्वयं तथा इनके चेले लोग अपने सम्प्रदाय के गुरु को जीवनदाता,कल्याणप्रदाता सर्वदुख तारक,साक्षात मोक्ष देने वाला बताते है..उसकी श्रेष्ठता का पाठ जनता को पढ़ाते हैं , उसकी प्रशंसा में मिथ्या महात्म्य लिख-लिखकर उसके गौरव की धाक चेले-चेलियों पर जमाते है..और उन्हें अपना सर्वस्व गुरूजी को अर्पण कर देने का पाठ पढ़ाते हैं इनके रटे  हुए व्याख्यानों को सुन-सुनकर साधारण बुद्धिमानों की कौन कहे बड़े-बड़े भी बहक जाते हैं..रोगों से मुक्ति,मुकद्दमों में विजय,शत्रुओं का नाश,धनवान ,पुत्रवान बनने की कामनाएँ भक्तों की गुरु सेवा व उसके प्रसाद से होने की बनावटी दृष्टान्तों सहित कथाएँ जब इनके प्रचारक जनता को सुनाते हैं तो परेशान लोग यह सोचकर कि शायद हमारा भी कल्याण हो जाये ,उनकी बातों पर विशवास करके उनके गुरूजी के चेले बन जाते है..विशेषतः भोली-भाली स्त्रियाँ उनके जाल में सुगमता से फंस जाती हैं,और अपना तन,मन,धन सर्वस्व गुरूजी को दे बैठती हैं..गुरूजी का ४२० का जीवन इन पाखंडों से आनंद के साथ बीतता है..उनके हथकंडों से उन्हें सारे भोग सुगमता से प्राप्त हो जाते है तथा अज्ञानी चेले-चेली व भक्तजन लुटते व मूर्ख बनकर अपने भाग्य पर रोया करते है.

  (  साभार :- आचार्य डॉ.श्रीराम आर्य कृत "गुरुडम के पाखण्ड" से  )